Sunday, 21 June 2020

भक्ति के साथ देशभक्ति

दोस्तों,
हरे कृष्ण, 

चीन जैसे कुटिल और चालक दुश्मन को कैसे सबक सिखाया जाय आज देश के सामने ये एक मुख्य प्रश्न बन चुका है, तो इस सम्बन्ध मैं मेरे विचार थोडा अलग हैं शायद आपको पसंद आयें. 

मैं भी आपकी भांति देशभक्त कहलाना पसंद करूंगा तो इस प्रश्न का उत्तर मैं भगवद गीता मैं ढूँढने गया तो मुझे अध्याय ३ का ८ वां श्लोक मिला जिसमें भगवान्  कहते हैं कि -

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म जयायो ह्यमृणणः |
शरीरायत्र अन्य च ते न प्रसिद्धेदिमृणः || ८ ||

अपना नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है | कर्म के बिना तो शरीर-निर्वाह भी नहीं हो सकता |

भगवान् अर्जुन को अपना नियत कर्म करने की सलाह दे रहे हैं, अब क्योंकि अर्जुन एक क्षत्रिय है तो उसको युद्ध करना ही चाहिए वो उसका नियत कर्म है | जब भगवान् अर्जुन को अपना नियत कर्म करने का उपदेश दे रहे हैं तो ये उपदेश सिर्फ अर्जुन के लिए नहीं ये हमारे लिए भी है कि हम अपना नियत कर्म करें अर्थात हम अपने जीवन को चलने के लिए जो भी कार्य करते हैं उसे ही ठीक प्रकार से करें जैसे - यदि अध्यापक का कार्य है छात्रों को शिक्षा देना, तो ईमानदारी से शिक्षण कार्य करे, व्यापारी का कार्य व्यापार करना है तो उस से भी यही आशा की जाती है की वो व्यापार ईमानदारी से करे और सरकार को नियमित बिक्री कर जमा करे, किसान का काम है खेती करना तो वो अपने काम मैं कोताही न बरते इसी प्रकार जो भी व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसे मेहनत और ईमानदारी से करे तो मेरे विचार से इस से बड़ी कोई देश सेवा नहीं होगी

आज के समय मैं कितने व्यक्ति हैं जो अपना अपना कार्य ईमानदारी और मेहनत से करते हैं जरा सोचिये, हम अपना कार्य ईमानदारी से न करें और सरकार और सैनिकों से अपेक्षा रखें कि या दूसरों से अपेक्षा रखें चीन को सबक सिखाना है तो ये संभव नहीं हैं |

आज के परिप्रेक्ष्य मैं देखें तो कोरोना वायरस से सम्बंधित जब lock down हुआ तो मुनाफाखोरों और जमाखोरों ने जमकर मुनाफाखोरी की, क्या ये देशसेवा की श्रेणी मैं आती है आप परेशान लोगों की मजबूरी का लाभ उठाते हैं, चलो लाभ आपने उठाया तो सरकार को उस के अनुसार टैक्स दिया? ये चोरी है | आपने जिन लोगों से मुनाफाखोरी की उनमें उन सैनिकों के परिवार वाले और सैनिक भी थे जो आज सीमा पर दुश्मन देश से लोहा ले रहे हैं | तो क्या देश की सेवा का ठेका सिर्फ सैनिकों ने ही ले रखा है हमारा कोई कर्त्तव्य नहीं हैं ?

जैसे आप एक सैनिक से अपेक्षा रखते हैं की देश के सेवा करते समय वो सजग और ईमानदारी से अपना काम करें तो क्या हमारा कर्त्तव्य नहीं बनता है की हम भी अपना काम सजगता और ईमानदारी से करें| किसी भी सरकारी विभाग मैं बैठा एक अधिकारी/कर्मचारी  बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करता और रिश्वत नहीं देने पर टरकाता रहता है क्या इसको देशभक्ति कहेंगे या नियत कर्म कहेंगे ?

मैं जब स्कूल मैं पढता था तो हमारे एक अध्यापक किसी कार्यवश जापान गए थे तो उन्होंने वहां देखा की रेल की सीट थोड़ी फट गयी थी तो एक जापानी ने अपने बैग मैं से तुरंत सुई धागा निकला और उसे सिल दिया जिस से रेलवे को रख रखाव पर खर्चा कम आये,  क्या ये भावना हमारे अन्दर है ? हमारे भारत मैं यदि रेलवे की सीट फट जाय तो उसके अन्दर का स्पंज निकल कर घर ले आयेंगे ये हमारी देशभक्ति है |

यदि हमारे पास लाइसेंस नहीं और चेकिंग(वसूली) चल रही हो तो हम सोचते है कि  पुलिसे वाले को धोका  कैसे दूं और पुलिसे वाला सोचता है अब आया पकड़ मैं इस से वसूली कैसे करूं और अपनी जेब भरूं ये है दोनों के नियत कर्म |  

लेख थोडा बड़ा हो गया क्षमा चाहता हूँ लेकिन विचार करें की क्या हम अपना नियत कर्म कर रहे हैं ?