Saturday, 4 July 2020

चातुर्मास (चौमासा)

चातुर्मास (चौमासा)

हरे कृष्ण,
शास्त्रों के अनुसार अषाढ़ मास मैं शुक्ल पक्ष की एकादशी की रात्रि से भगवान् विष्णु अगले चार महीने के लिए योगनिद्रा मैं लीन हो जाते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को योगनिद्रा से जागते हैं इसलिए इन चार महीनों को चातुर्मास कहा जाता हैं । चातुर्मास का सनातन धर्म मैं बिशेष अध्यात्मिक महत्व है । इन चार महीनों मैं शुभ मांगलिक कार्य जैसे गृह प्रवेश, विवाह, देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा एवं यज्ञ आदि संस्कार बंद कर दिए जाते हैं । शास्त्रों के अनुसार वर्षा ऋतू के चार मास लक्ष्मीजी भगवान् विष्णु के सेवा मैं रहती हैं ।  इस अवधि मैं यदि कुछ नियमों का पालन करते हुए विशेष व्रत रखें तो मनोकामना पूर्ण होती है या भगवन के भक्तों की भक्ति मैं विशेष प्रगति होती हैं ।

ब्रत कब शुरू करें -
देवशयानी एकादशी से शुरू करें या फिर अषाढ़ मास की पूर्णिमा से शुरू कर सकते हैं

क्या करें ?
सूर्योदय से पहले स्नान करें ।
यदि संभव हो तो दिन मैं एक समय भोजन करें  ।
पूर्णत: शाकाहारी भोजन करें, प्याज लहसुन ना खाएं  ।
ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
हरे कृष्ण महामंत्र का जाप यदि करते हैं तो बढ़ा दें और यदि नहीं करते है तो शुरू कर दें ।
भगवद गीता, भागवतम  का नित्य पाठ करें  ।
मंदिर मैं दीपक जलाएं ।
ये सब नियम त्याग और संयम की भावना उत्पन्न करते हैं


क्या न करें ?
श्रावण के महीने मैं हरी पत्तेदार सब्जी ना खाएं ।
भाद्रपद मैं दही न खाएं ।
आश्विन मास मैं दूध का त्याग करें ।
कार्तिक मास मैं उड़द दाल का त्याग करें  ।

ये होते हैं लाभ -
जो व्यक्ति गुड का त्याग करता हैं उसकी वाणी मैं मधुरता आती है ।
जो तेल का त्याग करता हैं, उसके समस्त शत्रुओं का नाश होता है ।
जो घी का त्याग करता है उसके सौंदर्य मैं वृद्धि होती है ।
जो हरी सब्जी का त्याग करता है उसकी बुद्धि प्रखर होती है ।
जो दूध और दही का त्याग करता है उसके वंश मैं वृद्धि होती है ।
जो व्यक्ति नमक का त्याग करता है, उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण होकर उसके सभी कार्य मैं निश्चित सफलता प्राप्त होती हैं ।

अवधेश पाराशर
अतरौली