क्या आपने ईश्वर को देखा है या क्या आप मुझे ईश्वर को दिखा सकते हैं ?
आप भी ईश्वर को देख सकते, हर व्यक्ति ईश्वर को देख सकता लेकिन आपमें योग्यता होनी चाहिए ।
यदि आप कौन बनेगा करोडपति मैं जाना चाहते हैं तो आपको उसमें जाने की योग्यता होनी चाहिए बिना योग्यता के आप उसमें भी नहीं जा सकते इसके अतिरिक्त आपको ठीक प्रकार से वस्त्र आभूषण इत्यादी धारण करने होंगे और आपको कैसे बैठना है, कैसे बात करनी है, हाथ कैसे मिलाना है, कैसे दर्शकों का अभिवादन करना है सारे नियम मानने होते हैं. वहां बैठकर आप धूम्रपान, गुटखा नहीं खा सकते , शराब नहीं पी सकते और अनर्गल बातें भी नहीं कर सकते ।
इसी प्रकार जब आप किसी अधिकारी से मिलने जाते हैं या किसे मंत्री से मिलने जाते हैं तो पहले आपको appointment लेना होता है और निश्चित समय पर सारे protocol मानने पड़ते हैं तब ही आप मिल पाते हैं । इसी प्रकार भगवान् से मिलने के लिए आपको सारे प्रोटोकॉल का पालन करना होगा तब ही आप भगवान् को मिल या देख सकते हैं इसके बिना नहीं । आप कैसे सोच सकते हैं जो सारी सृष्टि का स्वामी है वो आपसे ऐसे ही मिल लेगा या आपको दर्शन भी दे देगा । आप कितने भी कष्ट मैं हों एक साधारण देश का प्रधानमंत्री भी बिना किसी नियम के आपकी सहायता नहीं कर सकता तो आप भगवान् से कैसे आशा रख सकते हैं की वो आपके सारे कष्ट दूर कर देगा ? इसके लिए आपको proper channel जाना पड़ेगा । कैसे ?
भगवान् त्रिगुणातीत हैं
हमारी प्रकृति तीन गुणों के अधीन हैं १. सतोगुण २. रजोगुण ३.तमोगुण ब्रह्माजी सतोगुण के अधीन हैं, देवता रजोगुण और मनुष्य तमोगुण या तीनों मिश्रित गुणों के अधीन हैं । हमें तमोगुण से रजोगुण और रजोगुण से सतोगुण मैं आना होगा और रजोगुण से ऊपर उठने पर है हम भगवान् को अनुभव कर सकते हैं देख सकते हैं तब ही भगवान् को देखने के बिषय मैं सोच सकते हैं । यदि हम भगवान् को देखना या अनुभव करना चाहते हैं तो हमें भी तीन गुणों से ऊपर उठना होगा ।अर्थात हमें पवित्र बनना होगा ।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा |
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर : शुचि: ||
अर्थात हमें अपने आप को बाहर और आंतरिक रूप से शुद्ध करना होगा बाहरी रूप से शुद्धि के लिए दिन मैं तीन बार स्नान करना चाहिए और आन्तरिक शुद्धि के लिए हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करके ह्रदय को शुद्ध करना चाहिए । जिससे हम अपने मूल स्वाभाव मैं स्थित हो सकें । अपनी मूल स्थिति मैं स्थित रहकर जीव प्रकृति के तीन गुणों से अप्रभावित रहता है । स गुणान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते।। भगवत गीता 14.26।। तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त होते ही वह ब्रह्म पद पर आसीन हो जाता है । ऐसे महापुरुष भगवान् को समझ सकते हैं लेकिन प्रकृति के प्रभाव से मुक्त न होने के कारण बद्ध जीव परम पुरुष की अनुभूति नहीं कर सकता । इसलिए भगवत गीता (२.४५) मैं अर्जुन को उपदेश देते हैं -
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
आप भी ईश्वर को देख सकते, हर व्यक्ति ईश्वर को देख सकता लेकिन आपमें योग्यता होनी चाहिए ।
यदि आप कौन बनेगा करोडपति मैं जाना चाहते हैं तो आपको उसमें जाने की योग्यता होनी चाहिए बिना योग्यता के आप उसमें भी नहीं जा सकते इसके अतिरिक्त आपको ठीक प्रकार से वस्त्र आभूषण इत्यादी धारण करने होंगे और आपको कैसे बैठना है, कैसे बात करनी है, हाथ कैसे मिलाना है, कैसे दर्शकों का अभिवादन करना है सारे नियम मानने होते हैं. वहां बैठकर आप धूम्रपान, गुटखा नहीं खा सकते , शराब नहीं पी सकते और अनर्गल बातें भी नहीं कर सकते ।
इसी प्रकार जब आप किसी अधिकारी से मिलने जाते हैं या किसे मंत्री से मिलने जाते हैं तो पहले आपको appointment लेना होता है और निश्चित समय पर सारे protocol मानने पड़ते हैं तब ही आप मिल पाते हैं । इसी प्रकार भगवान् से मिलने के लिए आपको सारे प्रोटोकॉल का पालन करना होगा तब ही आप भगवान् को मिल या देख सकते हैं इसके बिना नहीं । आप कैसे सोच सकते हैं जो सारी सृष्टि का स्वामी है वो आपसे ऐसे ही मिल लेगा या आपको दर्शन भी दे देगा । आप कितने भी कष्ट मैं हों एक साधारण देश का प्रधानमंत्री भी बिना किसी नियम के आपकी सहायता नहीं कर सकता तो आप भगवान् से कैसे आशा रख सकते हैं की वो आपके सारे कष्ट दूर कर देगा ? इसके लिए आपको proper channel जाना पड़ेगा । कैसे ?
भगवान् त्रिगुणातीत हैं
हमारी प्रकृति तीन गुणों के अधीन हैं १. सतोगुण २. रजोगुण ३.तमोगुण ब्रह्माजी सतोगुण के अधीन हैं, देवता रजोगुण और मनुष्य तमोगुण या तीनों मिश्रित गुणों के अधीन हैं । हमें तमोगुण से रजोगुण और रजोगुण से सतोगुण मैं आना होगा और रजोगुण से ऊपर उठने पर है हम भगवान् को अनुभव कर सकते हैं देख सकते हैं तब ही भगवान् को देखने के बिषय मैं सोच सकते हैं । यदि हम भगवान् को देखना या अनुभव करना चाहते हैं तो हमें भी तीन गुणों से ऊपर उठना होगा ।अर्थात हमें पवित्र बनना होगा ।
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपी वा |
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाहान्तर : शुचि: ||
अर्थात हमें अपने आप को बाहर और आंतरिक रूप से शुद्ध करना होगा बाहरी रूप से शुद्धि के लिए दिन मैं तीन बार स्नान करना चाहिए और आन्तरिक शुद्धि के लिए हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करके ह्रदय को शुद्ध करना चाहिए । जिससे हम अपने मूल स्वाभाव मैं स्थित हो सकें । अपनी मूल स्थिति मैं स्थित रहकर जीव प्रकृति के तीन गुणों से अप्रभावित रहता है । स गुणान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते।। भगवत गीता 14.26।। तीनों गुणों के प्रभाव से मुक्त होते ही वह ब्रह्म पद पर आसीन हो जाता है । ऐसे महापुरुष भगवान् को समझ सकते हैं लेकिन प्रकृति के प्रभाव से मुक्त न होने के कारण बद्ध जीव परम पुरुष की अनुभूति नहीं कर सकता । इसलिए भगवत गीता (२.४५) मैं अर्जुन को उपदेश देते हैं -
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् || ४५ ||
वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है | हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो | समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिन्ताओं से मुक्त होकर आत्म-परायण बनो | जो तीनों गुणों के प्रभाव मैं बना रहता है वह भगवान् को समझने मैं असमर्थ रहता हैं ।
श्री यामुनाचार्य ने अपने स्तोत्र रत्न(४३) मैं निम्नलिखित श्लोक दिया है
भवन्तं एवानुचारम निरंतर:
प्रशंतनि:शेषमनोरथानतर:।
आपकी नित्य सेवा करने से मनष्य सभी भौतिक इच्छाओं से मुक्त हो जाता है और पूर्णतया शांत रहता है । हे भगवन ! कब वह समय आएगा जब मैं आपका स्थायी नौकर बनकर और आप जैसा उपयुक्त स्वामी पाकर सदैव प्रसन्न रह सकूंगा ? जो मन की इच्छा पूरी करने के लिए कर्म करता है उसे भौतिक कार्य करने ही पड़ते हैं। किन्तु भगवान् तथा उसके शुद्ध भक्तों मैं भौतिक इच्छाएं सर्वदा अनुपस्थित रहती हैं ।
स्वयं भगवान् का कथन है (भ०गी० १८.६६)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
"सारे धर्मों का परित्याग करके मेरी शरण मैं आओ । मैं सारे पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूंगा । डरो मत ।" भगवान् किसी भी व्यक्ति के पापों के फलों को ग्रहण करके उनका निराकरण कर सकते हैं क्योंकि वे सूर्य के सामान पवित्र है जो कभी भी सांसारिक स्पर्श से दूषित नहीं होता । तेजीयसाम न दोषाय.... ( भागवतम १०.३३.२९) जो अत्यंत शक्तिमान हैं वह किसी पापकर्म से दूषित नहीं होता । इस प्रकार हम सभी प्रकार से भगवान् की शरण ग्रहण करें जो परम पवित्र हैं तो हम भी पवित्र हो जायेंगे, और जब हम पवित्र हो सकेंगे तब ही भगवान् को अनुभव कर सकेंगे ।
तमोगुण का त्याग कैसे करें ?
इस कलियुग मैं सामान्यतया सभी लोग तमोगुण मैं स्थित हैं तमोगुण से ऊपर उठाने के लिए सबसे पहले हमें तामसिक वस्तुओं का त्याग करना होगा । आप इस प्रकार प्रैक्टिकल कर सकते हैं ।
१. टी. वी. , सिनेमा का पूर्ण रूप से त्याग करना होगा, क्या से संभव है? वास्तव मैं इन वस्तुओं की कोई आवश्यकता ही नहीं है जिन्होंने इसे बनाया वो ही इसे Idiot box कहते हैं क्योंकि ये हमें मूर्ख बनाता है हम वो सोचते हैं जो ये हमें सोचने पर मजबूर करता है । यदि आपको लगता है की टी.वी. नहीं देखेंगे तो अपडेट कैसे रहेंगे तो आप इन्टरनेट का प्रयोग कर सकते हैं अपडेट होने के लिए या आप ३० मिनट या ६० मिनट का समय निर्धारित कर सकते हैं की इसी समय देखेंगे अन्यथा नहीं, बच्चों को तो विशेष रूप से १ घंटा से अधिक टी.वी. नहीं देखने देना चाहिए ।
२. बाहर के खाद्य पदार्थों के त्याग - ये संभव है हम बढ़िया से बढ़िया खा सकते हैं कोशिश करें की सभी को घर मैं तैयार करें और भगवान् को भोग लगाकर ग्रहण करें । जब भगवान् को भोग लगेगा तो वह वास्तु प्रसाद बन जायेगी और प्रसाद पाने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं । जैसा खाओगे अन्न वैसा बने मन । आप ये तो मानते ही होंगे की घर का बना भोजन शुद्ध होता है तो शुद्ध खाने मैं क्या हानि है बस इसका भगवान् को भोग और लगा दो, लो बन गया प्रसाद और तीन समय भोग लगाकर खाएं।
३.शास्त्रों का अध्ययन - नियमित शास्त्रों का अध्ययन करें जिससे हमारे मन मैं सात्विक विचारों का उदय हो सके और तमोगुणी वस्तुओं और विचारों से दूर रह सकते हैं । बच्चों को प्राचीन भारतीय इतिहास पढ़ने के लिए प्रेरित करें और उनको सही परिप्रेक्षय मैं समझें टी.वी. देखकर नहीं पढ़कर शास्त्रों को समझें । रामायण और महाभारत टी.वी. पर मत देखो पहले उसे पढो फिर वो ठीक से समझ मैं आयेगा वर्ना आप उनको मनगढ़ंत कहानियां मानोगे । शास्त्रों मैं विज्ञानं है आप उस विज्ञानं को समझें ।
४. भगवान् के विषय मैं श्रवण - यदि हम भगवान् से सम्बंधित कथाओं को सुनें चाहे वो प्रत्यक्ष हों या इन्टरनेट या अन्य किसी भी माध्यम से सुनें तो तो भी तामसिक विचारों से दूर हो सकते हैं ।
५. नियमित हरे कृष्ण मंत्र का जप करें । प्रातः ८ बजे से पहले नियमित हरे कृष्ण महामंत्र का जप करें इस से आपको जीवन मैं शांति का अनुभव होगा और भगवान् की निकटता का अनुभव होगा क्योंकि कलियुग मैं भगवान् ने अपनी सारी शक्तियां नाम मैं रख दी हैं आप जब भी भगवान् का नाम लेते हैं आप भगवान् की सेवा करते हैं और भगवान् क्या कोई भी व्यक्ति अपनी सेवा से प्रसन्न होता ही है।
यदि आपको लगता है की इस से क्या होगा तो अधिक नहीं आप १ माह करें फिर आप स्वयं अपने आप मैं परिवर्तन महसूस करेंगे । तमोगुणी विचारों और वस्तुओं से दूर रहने का प्रभाव ये होगा की आपने मन मैं सतोगुणी विचार उत्पन्न होंगे शुरू होंगे । आप कोई भी दान, पुण्य, पूजा, पाठ या आपको जो पाखंड लगता हो मत करें बस तमोगुण से दूर रहे निश्चित ही आपने जीवन मैं सकारात्मक परिवर्तन शुरू होंगे और ये आपको काफी आनंददायक लगेगा और भगवान् के निकट ले जाएगा ।
हरे कृष्ण,
दंडवत,
दंडवत,
अवधेश पाराशर