Sunday, 12 April 2020

भगवान् को भोग कैसे लगायें ?

सभी भक्तों को हरे कृष्ण,

क्या भगवान् भोग स्वीकार करते हैं ?

सामान्य लोग पूछते हैं की क्या भगवान् खाते हैं ? हाँ भगवान् अवश्य खाते हैं यदि हम प्रेमपूर्वक पूर्ण श्रद्धा से भोग अर्पित करें तो । जैसे पिता छोटे बच्चे के लिए बाजार से फल या मिठाई खरीद कर लता है और वह बच्चे को देता है लो बेटा मैं ये तुम्हारे लिए लाया ‌‍‍‌हूँ । और बच्चा खाने से पहले उसे प्लेट मैं सजाकर पिता से कहे की लो पिताजी पहले आप खाओ फिर मैं खाऊँगा तो पिता कितना खुश होगा उसी प्रकार यदि हम स्वयं खाने से पहले भगवन को अर्पित करें तो वह भी प्रसन्न होते हैं ।

भगवान् कैसे खाते हैं ?
भगवान् तीन प्रकार से खाते हैं -
१. जो नए भक्त होते हैं जिनका भगवन और शास्त्र पर पूर्ण विश्वास नहीं होता भगवान् उनका भोग देख कर ही स्वीकार करते हैं क्योंकि भगवन अपने शरीर के किसी भी अंग से कोई कार्य कर सकते हैं तो भगवान् आँखों से ही भोग स्वीकार कर लेते हैं ।
२. दुसरे माध्यम श्रेणी के भक्त होते हैं जिनको शास्त्र और भगवान् मैं विश्वास तो होता है लेकिन पारंगत नहीं होते शास्त्रों का पूर्ण अध्ययन नहीं किया होता है भगवान् उनका भोग हाथ से स्पर्श करके स्वीकार करते हैं ।
३. तीसरी श्रेणी मैं शुद्ध भक्त आते हैं जिन्होंने अपना सर्वस्व भगवान् को अर्पण किया होता है भगवान् उनका भोग पूर्ण रूपेण स्वीकार करते हैं लेकिन भगवान् इतने दयालु हैं की ज्यों का त्यों वापस कर देते हैं।

कैसा भोग अर्पण करें ?सर्व प्रथम तो ये बात समझने की है कि भगवन को प्रेम पूर्वक जो भी भोग लगाया जाता है वो स्वीकार करते हैं आवश्यक नहीं की उनको मेवा मिष्ठान का ही भोग लगाया जाए भगवत गीता मैं भगवान् कहते हैं पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।9.26 अर्थात फल, फूल पत्ता पानी भक्त मुझे जो भी अर्पण करता हैं मैं उसे स्वीकार करता हूँ । पत्रं - तुलसी पत्र, पुष्पं - फूल, फलं - मौसम के फल, और पानी भी भगवान् को अर्पण कर सकते हैं तो भगवान् उसे ग्रहण करते हैं लेकिन यदि आप समर्थ हैं तो अपनी ओर से श्रेष्ठ भोग अर्पित करना चाहिए। ऐसा नहीं कि भगवान् को पत्ता फूल फल और पानी दे रहे हैं और स्वयं माल खा रहे हैं, नियम के अनुसार जो भगवान् को अर्पण को देंगे  उसी को हम खायेंगे । घर मैं अपने खाने के लिए जो भी बनायें ये सोच कर बनाएं की ये भगवान् के लिए बन रहा है अर्थात प्रसाद बन रहा है। क्योंकि भक्त तमागुनी भोजन नहीं खाता इसलिए भगवान् को तमागुनी वस्तुओं का भोग न लगाएं जैसे प्याज, लहसुन और मसूर की दाल एवं मांसाहारी भोजन भी तमागुनी होता है इसलिए उसे भोग मैं प्रयोग न करें । जहाँ तक संभव हो सके भोग  की वस्तुएं घर मैं ही तैयार करें बाजार से आप फल फूल दूध से बने पदार्थ और भुने हुए पदार्थों का प्रयोग कर सकते हैं ।

भोग कैसे लगायें ?

भगवान् के लिए प्रसाद तैयार करने के बाद उसे ऐसे बर्तनों मैं परोसें जिनमे हम स्वयं नहीं खाते, यदि घर मैं ऐसे बर्तन नहीं हैं तो जिनमें बनाया है उन्हीं बर्तनों मैं भी अर्पण कर सकते हैं, और संभव हो तो चांदी, ताम्बा या पीतल के बर्तन मैं अर्पण करें न होने की स्थिति मैं स्टील के बर्तन भी प्रयोग कर सकते हैं। इतना खाना परोसें जितना एक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, जितने भी पदार्थ बने सब को अलग कटोरी गिलास चम्मच का प्रयोग करें और सबके ऊपर तुलसी पत्र रखें, तुलसी पत्र न होने की स्थिति मैं तुलसी के बीज और उसकी लकड़ी भी प्रयोग मैं लायी जा सकती है लेकिन भगवान् बिना तुलसी के भोग स्वीकार नहीं करते, पानी मैं अवश्य डालें,
भोग लगाते समय भगवान् का मुकुट, बंसी, माला इत्यादि उतार दें, और भगवान् के सामने भोग रखें और पर्दा बंद करें और घंटी बजाएं, भोग अर्पण करने का मन्त्र बोलें यदि नहीं आता हैं ॐ श्री विष्णु तीन बार बोलकर बोल सकते हैं। दंडवत करें और भगवान् से प्रार्थना करें की भोग स्वीकार करें। भोग लगाने के बाद उसे तुरंत न उठाएं कम से कम १० मिनट अर्थात जितने देर मैं एक व्यक्ति भोजन करता है उतने देर उसे रखा रहने दें, उसके बाद पुनः घंटी बजाकर मंत्र बोलकर पर्दा हटाएं और भोग की थाली हटा लें और भगवान् को माला मुकुट इत्यादी पहना दें और भोग के पदार्थों को पूरे खाने मैं मिला दें तो पूरा खाना फिर प्रसाद बन जायेगा और घर मैं सभी लोग प्रसाद ग्रहण करें। प्रसाद पाने से मन और शरीर शुद्ध होता है इसलिए घर मैं जितने भी बार बनाएं उतनी बार भोग लगायें । यदि हम प्रण कर लें की सिर्फ भगवान् का प्रसाद ही खायेंगे तो भी आपकी शुद्धि हो जाएगी, बाजार का खाना छूट जायेगा और आप स्वस्थ भी रहेंगे ।

हरे कृष्ण
अवधेश पराशर

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