Sunday, 19 April 2020

हिन्दू धर्म मैं confusion

प्राचीनकाल में देव, नाग, किन्नर, असुर, गंधर्व, भल्ल, वराह, दानव, राक्षस, यक्ष, किरात, वानर, कूर्म, कमठ, कोल, यातुधान, पिशाच, बेताल, चारण आदि जातियां हुआ करती थीं। देव और असुरों के झगड़े के चलते धरती के अधिकतर मानव समूह दो भागों में बंट गए। पहले बृहस्पति और शुक्राचार्य की लड़ाई चली, फिर गुरु वशिष्ठ और विश्‍वामित्र की लड़ाई चली। इन लड़ाइयों के चलते समाज दो भागों में बंटता गया।
 
हजारों वर्षों तक इनके झगड़े के चलते ही पहले सुर और असुर नाम की दो धाराओं का धर्म प्रकट हुआ, यही आगे चलकर यही वैष्णव और शैव में बदल गए। लेकिन इस बीच वे लोग भी थे, जो वेदों के एकेश्वरवाद को मानते थे और जो ब्रह्मा और उनके पुत्रों की ओर से थे। इसके अलावा अनीश्वरवादी भी थे। कालांतर में वैदिक और चर्वाकवादियों की धारा भी भिन्न-भिन्न नाम और रूप धारण करती रही।
शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों के झगड़े के चलते शाक्त धर्म की उत्पत्ति हुई जिसने दोनों ही संप्रदायों में समन्वय का काम किया। इसके पहले अत्रि पुत्र दत्तात्रेय ने तीनों धर्मों (ब्रह्मा, विष्णु और शिव के धर्म) के समन्वय का कार्य भी किया। बाद में पुराणों और स्मृतियों के आधार पर जीवन-यापन करने वाले लोगों का संप्रदाय ‍बना जिसे स्मार्त संप्रदाय कहते हैं।

इस तरह वेद और पुराणों से उत्पन्न ५  तरह के संप्रदाय माने जा सकते हैं:- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय। वैष्णव जो विष्णु को ही परमेश्वर मानते हैं, शैव जो शिव को परमेश्वर ही मानते हैं, शाक्त जो देवी को ही परमशक्ति मानते हैं और स्मार्त जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं। अंत में वे लोग जो ब्रह्म को निराकार रूप जानकर उसे ही सर्वोपरि मानते हैं। हालांकि आजकल सब कुछ होचपोच।
आज हम संक्षिप्त रूप से विभिन्न सम्प्रदायों की चर्चा करेंगे -

१. वैष्णव - जो भक्त हैं और भगवान् विष्णु या कृष्ण की भक्ति करते हैं और उनको ही एकमात्र ईश्वर के रूप मैं स्वीकार करते हैं वैष्णव कहलाते हैं वैष्णव के मुख्य रूप से ५ सप्रदाय हैं 
  1. ब्रह्म संप्रदाय - जिसके आद्य प्रवर्तक चतुर्मुखी ब्रह्माजी हैं और प्रमुख आचार्य मध्वाचार्य हुए इसे वर्तमान मैं मध्व संप्रदाय के नाम से जाना जाता हैं ।
  2. श्री संप्रदाय - जिसकी आद्य प्रवर्तिका विष्णुपत्नी महालक्ष्मी और प्रमुख आचार्य रामानुजाचार्य हुए।
  3. रूद्र संप्रदाय - जिसके आद्य प्रवर्तक देवादिदेव् महादेव और प्रमुख आचार्य बल्लभाचार्य हुए वर्तमान मैं वल्लभ संप्रदाय के नाम से जाना जाता हैं।
  4. कुमार संप्रदाय - जिसके आद्य प्रवर्तक सनत्कुमार गन और प्रमुख आचार्य निम्बार्काचार्य हुए जिसे वर्तमान मैं निम्बार्क संप्रदाय कहा जाता हैं।
इसका अलावा उत्तर भारत मैं ब्रह्म(मध्व) संप्रदाय के अंतर्गत ब्रह्म मध्व गोड़िय संप्रदाय जिसके प्रवर्तक श्री चैतन्य महाप्रभु और श्री रामानुज संप्रदाय और रामंदाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्गों जाति के व्यक्तियों को उपदेश दिया ।

विष्णु के अवतार : शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बु‍द्ध और कल्कि।

24 अवतारों का क्रम निम्न है-1. आदि परषु, 2. चार सनतकुमार, 3. वराह, 4. नारद, 5. नर-नारायण, 6. कपिल, 7. दत्तात्रेय, 8. याज्ञ, 9. ऋषभ, 10. पृथु, 11. मत्स्य, 12. कच्छप, 13. धन्वंतरि, 14. मोहिनी, 15. नृसिंह, 16. हयग्रीव, 17. वामन, 18. परशुराम, 19. व्यास, 20. राम, 21. बलराम, 22. कृष्ण, 23. बुद्ध और 24. कल्कि।

वैष्णव ग्रंथ : ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है। ईश्वर संहिता, पाद्मतन्त, विष्णु संहिता, शतपथ ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, महाभारत, रामायण, भागवत पुराण, विष्णु पुराण आदि।

वैष्णव पर्व और व्रत : एकादशी, चातुर्मास, कार्तिक मास, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्टमी, होली, दीपावली आदि।

वैष्णव तीर्थ : बद्रीधाम (badrinath), मथुरा (mathura), अयोध्या (ayodhya), तिरुपति बालाजी, श्रीनाथ, द्वारकाधीश।

वैष्णव संस्कार : 1. वैष्णव मंदिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं। एकेश्‍वरवाद के प्रति कट्टर नहीं है। 2. इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं। 3. इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं। 4. ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं। 5. ये सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं। 6. जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं। 7. वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। 8. वैष्णव दाह-संस्कार की रीति है। 9. यह चंदन का तिलक खड़ा लगाते हैं। 

वैष्णव साधु-संत : वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है।




२. शैव - भगवान शिव तथा इन के अवतारों को मानने वालों को शैव कहते हैं । शैव मैं शाक्त, नाथ, दसनामी, नाग, आदि उप संप्रदाय हैं । महाभारत मैं शैव के चार संप्रदाय बतलाये गए हैं १) शैव २) पाशुपत ३) कालदमन ४) कापालिक शैव मत का मूलरूप ऋग्वेद मैं रूद्र की आराधना मैं है । रुद्रों मै प्रमुख रूद्र ही आगे चलकर शिव, शंकर, भोलेनाथ और महादेव कहलाये । 

शिव के अवतार : शिव पुराण में शिव के भी दशावतारों के अलावा अन्य का वर्णन मिलता है, जो निम्नलिखित है- 1. महाकाल, 2. तारा, 3. भुवनेश, 4. षोडश, 5.भैरव, 6.छिन्नमस्तक गिरिजा, 7.धूम्रवान, 8.बगलामुखी, 9.मातंग और 10. कमल नामक अवतार हैं। ये दसों अवतार तंत्रशास्त्र से संबंधित हैं।

शिव के अन्य 11 अवतार : 1. कपाली, 2. पिंगल, 3. भीम, 4. विरुपाक्ष, 4. विलोहित, 6. शास्ता, 7. अजपाद, 8. आपिर्बुध्य, 9. शम्भू, 10. चण्ड तथा 11. भव का उल्लेख मिलता है।

इन अवतारों के अलावा शिव के दुर्वासा, हनुमान, महेश, वृषभ, पिप्पलाद, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, अवधूतेश्वर, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, ब्रह्मचारी, सुनटनतर्क, द्विज, अश्वत्थामा, किरात और नतेश्वर आदि अवतारों का उल्लेख भी 'शिव पुराण' में हुआ है जिन्हें अंशावतार माना जाता है।

शैव ग्रंथ : वेद का श्‍वेताश्वतरा उपनिषद (Svetashvatara Upanishad), शिव पुराण (Shiva Purana), आगम ग्रंथ (The Agamas) और तिरुमुराई (Tiru-murai- poems)

शैव व्रत और त्योहार : चतुर्दशी, श्रावण मास, शिवरा‍त्रि, रुद्र जयं‍‍ती, भैरव जयंती आदि।

शैव तीर्थ : 12 ज्योतिर्लिंगों में खास काशी (kashi), बनारस (Benaras), केदारनाथ (Kedarnath), सोमनाथ (Somnath), रामेश्वरम (Rameshvaram), चिदम्बरम (Chidambaram), अमरनाथ (Amarnath) और कैलाश मानसरोवर (kailash mansarovar)

शैव संस्कार : 1. शैव संप्रदाय के लोग एकेश्वरवादी होते हैं। 2. इसके संन्यासी जटा रखते हैं। 3. इसमें सिर तो मुंडाते हैं, लेकिन चोटी नहीं रखते। 4. इनके अनुष्ठान रात्रि में होते हैं। 5. इनके अपने तांत्रिक मंत्र होते हैं। 6. ये निर्वस्त्र भी रहते हैं, भगवा वस्त्र भी पहनते हैं और हाथ में कमंडल, चिमटा रखकर धूनी भी रमाते हैं। 7. शैव चन्द्र पर आधारित व्रत-उपवास करते हैं। 8. शैव संप्रदाय में समाधि देने की परंपरा है। 9. शैव मंदिर को शिवालय कहते हैं, जहां सिर्फ शिवलिंग होता है। 10. ये भभूति तिलक आड़ा लगाते हैं।

शैव साधु-संत : शैव साधुओं को नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, ओघड़, योगी, सिद्ध आदि कहा जाता है।


३- शाक्त - जो शक्ति की पूजा करते हैं जैसे दुर्गा, भवानी, उमा इत्यादि । इस संप्रदाय मैं को देवी प्रमुख (पुरुष नहीं स्त्री )   माना जाता है जो सभी देवी के विभिन्न स्वरुप हैं शक्ति मत के अनुसार कई परम्पराएं भी मिलती हैं जिसमें लक्ष्मी से लेकर भयावह काली तक हैं । कुछ शक्त संप्रदाय अपनी देवी का सम्बन्ध शिव या विष्णु से बताते हैं
बिशेष - भगवान् की दो शक्तियां होती हैं १) परा शक्ति वो दुर्गा है २) अपरा शक्ति वो श्रीमती राधारानी हैं
सिन्धु घाटी की सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। शाक्त संप्रदाय प्राचीन संप्रदाय है। गुप्तकाल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ।
 

मां पार्वती : मां पार्वती का मूल नाम सती है। ये 'सती' शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। पुराणों के अनुसार सती के पिता का नाम दक्ष प्रजा‍पति और माता का नाम मेनका है। पति का नाम शिव और पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हैं। यज्ञ में स्वाहा होने के बाद सती ने ही पार्वती के रूप में हिमालय के यहां जन्म लिया था।

इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मार्केण्डेय पुराण में मिलती है। उन्होंने विष्णु के साथ मिलकर मधु और कैटभ का भी ‍वध किया था।
 

भैरव, गणेश और हनुमान : अकसर जिक्र होता है कि मां दुर्गा के साथ भगवान भैरव, गणेश और हनुमानजी हमेशा रहते हैं। प्राचीन दुर्गा मंदिरों में आपको भैरव और हनुमानजी की मूर्तियां अवश्य मिलेंगी। दरअसल, भगवान भैरव दुर्गा की सेना के सेनापति माने जाते हैं और उनके साथ हनुमानजी का होना इस बात का प्रमाण है कि राम के काल में ही पार्वती के शिव थे।
 

प्रमुख पर्व नवदुर्गा : मार्कण्डेय पुराण में परम गोपनीय साधन, कल्याणकारी देवी कवच एवं परम पवित्र उपाय संपूर्ण प्राणियों की रक्षार्थ बताया गया है। जो देवी की 9 मूर्तियांस्वरूप हैं जिन्हें 'नवदुर्गा' कहा जाता है, उनकी आराधना आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी तक की जाती है।

धर्म ग्रंथ : शाक्त संप्रदाय में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है जिसमें 108 देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी 51-52 शक्तिपीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशती भी है। 


शाक्त धर्म का उद्देश्य : सभी का उद्देश्य मोक्ष है फिर भी शक्ति का संचय करो। शक्ति की उपासना करो। शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की हम सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो, स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। तभी तो नाथ और शाक्त संप्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियां प्राप्त करते रहते हैं।

४- नाथ - इस सम्प्रदाय मैं बौद्ध, शैव या योग की परम्पराओं का समन्वय दिखाई देता है । यह हठयोग की साधनापद्धति पर आधारित हैं । शिव इस संप्रदाय केप्रथम गुरु एवं अराध्य हैं । इसके अलावा इसमें मच्छिंद्रनाथ, गुरु गोरखनाथ, सर्वाधिक प्रसिद्द हैं । गुरु गोरखनाथ ने बिखरी हुई योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया अत: इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं नाथ संप्रदाय को सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ अवधूत कहा जाता है

५- दशनामी संप्रदाय - दशनामी शब्द सन्यासियों, सरस्वती, गिरी, पूरी, वन, भारती, तीर्थ, सागर, अरण्य, पर्वत, और १०वां आश्रम है के एक संगठन विशेष गोस्वामियों के लिए प्रयुक्त होता है इसे सर्वप्रथम शंकराचार्य ने चलाया था । शंकराचार्य ने अपने मत के प्रचार के लिए भारत भ्रमण करते समय चार मठों की स्थापना की थी । जिसमें श्रंगेरी दक्षिण मैं, उत्तर मैं जोशीमठ, पूर्व मैं गोवर्धन मठ, तथा पश्चिम मैं शारदा मठ हैं

६ स्मार्त - जो पांच देवताओं की पूजा करते हैं और थोडा थोडा सभी सम्प्रदायों का समावेश होता है लेकिन एकनिष्ठता का अभाव होता है स्मार्ट कहलाते हैं आज भारतवर्ष मैं अधिकतर स्मार्त ही पाए जाते हैं
धर्मग्रंथ : सभी पुराण, स्मृतियां।

प्रमुख देवता : शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य एवं गणेश।

स्मृति ग्रंथों में मनु स्मृति सहित सभी स्मृतियां और पुराण आते हैं। वेदों को छोड़कर जो इन ग्रंथों पर आधारित जीवन-यापन करते हैं उनको स्मार्त संप्रदाय का माना जाता है। जैसे जो विष्णु को भी माने और शिव को भी, दुर्गा को भी और अन्य देवी-देवताओं का भी पूजन करें, वे सभी स्मार्त संप्रदाय के हैं। अधिकतर हिन्दू स्मार्त संप्रदाय के ही हैं जिसमें एकनिष्ठता का अभाव है।


७ - महानुभाव - इसके प्रवर्तक १२६७ मैं श्री चक्रधर स्वामी ने किया था वे परब्रह्म परमात्मा के अवतार हैं यह शास्वत सत्य कई प्रमाणों से सिद्ध हो चूका है । भगवान् श्री चक्रधर स्वामी ने ये प्रमाणित किया कीपरब्रह्म का अवतार द्वापर युग मैं श्री कृष्ण हैं भगवान् ने गीता मैं कहा है की - 
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वतः।
त्यक्तवा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥ (4-9) 
इसी कथनानुसार भगवान के अवतार हर किसी को ज्ञात नही होते, वह स्वयं भगवान अवतार धारण करके अज्ञानी मनुष्यो को जब ज्ञान देते हैं, तब उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार होता है, वैसे ही कलियुग में परमेश्वर भगवान श्री चक्रधर स्वामी जी ने अवतार धारण करके अपना परिचय दिया और यह बताया कि, भगवान श्रीकृष्ण जिन्हें सारी दुनिया विष्णुजी का अवतार समझती है, वह वास्तव में विष्णुजी का अवतार न होकर परब्रह्म परमेश्वर का अवतार है, तथा ब्रम्हा-विष्णु-महेश तथा सारे देवी देवता सृष्टि के चक्र को चलाने के लिये कार्यरत है, तथा वो देवता है, परमेश्वर नहीं, भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में अपने परमधाम का सात बार उल्लेख किया किन्तु एक बार भी उन्होंने वैकुंठ या क्षिराब्दि का उल्लेख नही किया...
जब आप महानुभाव सम्प्रदाय के तत्वज्ञान को पढ़ेंगे तो ऐसे अनगिनत रहस्य आपको पता चलेंगे जिससे यह सिद्ध होता है कि श्रीकृष्ण पूर्ण परब्रह्म परमेश्वर का अवतार हैं, विष्णुजी नहीं, इसीलिए जिनको भी भगवान श्रीकृष्ण या परमात्मा तथा मोक्ष में आसक्ति है, उन्हें महानुभाव पंथ की शरण जाने की सलाह दी जाती है,
भगवान श्रीकृष्ण ने दसवें के दसवें श्लोक में कहा भी है कि
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ⁠।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ⁠।⁠।⁠10-10।⁠।
उन निरन्तर मेरे ध्यान आदिमें लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजनेवाले भक्तोंको मैं वह तत्त्वज्ञानरूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं....
इस श्लोक में विशेष यह है कि भजन-ध्यान तो सभी जन करते है, किन्तु निरंतर निरंतर होना चाहिए, (सततयुक्तानाम्)
भगवान को भजते तो सभी है किंतु वह भजना प्रीतिपूर्वक होना चाहिए, क्योंकि प्रेम के तीन स्तर होते है, प्रथम स्तर प्रेम है, दूसरा स्तर स्नेह और तीसरा स्तर है प्रीति, अर्थात अगर आप भगवान के प्रति प्रेम की पूर्ण निष्ठा को प्राप्त हो गए है, मतलब आप भगवान को प्रीतिपूर्वक भज रहे है, (प्रीतिपूर्वकम्)
महानुभाव पंथ तथा जय कृष्णी पंथ स्थापना

महानुभाव पंथ (जय क्रिष्णी पंथ) की स्थापना
भगवान श्री चक्रधर स्वामी ने इ. स. १२६७ की, समाज के विशेष कर पिछ्डे वर्ग को जीवन का अंतिम सत्य एवं मोक्षं प्राप्ती के राह दिखाये, भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी का अवतार धारण करना समाज के लिये बहोत ही उपयुक्त रहा, उन्होने अपने अनुयायीओको सत्य, अहिंसा, प्रेमदान एवं क्षमादान की मार्ग पर चलने के मार्ग दिखाये, प्रभू ने पंच अवतार की संकल्पना बहुत ही सुचारू ढंग से समाज को बतलाकर जीवन सफल किया...
वह मराठी भाषा के जन्मदाता हैं, मराठी भाषा की पहली कवयित्री महदंबा उनकी शिष्या थीं, मराठी के आद्यग्रंथ लीलाचरित्र में श्री चक्रधर स्वामी की जीवनी समाविष्ट है...

भगवान श्री चक्रधर स्वामीजी ने अपने भक्तोको कहा, "प्रभू चारो युगो मे अवतार धारण करते है"
जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र मे अर्जुन से कहा था,
"धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे"
ठीक उसी प्रकार ऐसा कोई युग नही, जहा भगवान का वास न हो...


मेरे विचार से आप लोगों का काफी हद तक confusion दूर हो गया होगा और आप समझ चुके होंगे की आप कहाँ और किस स्तर पर स्थित हैं अगले लेख मैं हम विश्व की सर्वश्रेष्ठ परंपरा वैष्णव परंपरा का उल्लेख करेंगे क्योंकि वैष्णव होना ही आप सभी के हित मैं है और ये ही सुगम उपाय है जो सीधे वेदों अनुगमन करता है.  



No comments:

Post a Comment