Saturday, 16 May 2020

भक्ति रस का अमृत सागर -02 (शुभदा)

हरे कृष्ण,

शुभदा (सर्व मंगलकारी)
आज हम कृष्ण भक्ति के दूसरे लक्षण शुभदा के बारे मैं चर्चा करेंगे-
श्रील रूप गोस्वामी ने शुभदा की परिभाषा दी है उनका कथन है कि वास्तविक शुभ का अर्थ है विश्व भर के समस्त लोगों के लिए कल्याण कार्य । इस समय लोगों के समूह समाज, जाती या राष्ट्र के रूप मैं कल्याण कार्यों मैं लगे हुए हैं । यहाँ तक कि विश्व सहायता कार्य के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी प्रयास हो रहा है। किन्तु सीमित राष्ट्रीय कार्यों के दोषों के कारण सारे विश्व के लिए ऐसे सामूहिक कल्याण कार्यक्रम व्यावहारिक रूप मैं संभव नहीं हैं । किन्तु कृष्ण भावनामृत आन्दोलन इतना उत्तम है कि यह सम्पूर्ण मनुष्य जाति को सर्वोच्च लाभ पंहुचा सकता हैं । पदम् पुराण मैं उल्लेख हुआ है "जो व्यक्ति पूर्ण भक्ति मैं तत्पर है वह सारे विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेवा करता और हर व्यक्ति को तृप्त करता मन जाना चाहिए। मानव समझ के अतिरिक्त वह वृक्षों तथा पशुओं तक को प्रसन्न करता है, क्योंकि ऐसे आन्दोलन के प्रति वे आकृष्ट होते हैं " इसका जीता जागता उदहारण भगवान् श्री चैतन्य महाप्रभु ने प्रस्तुत किया । जब वे अपने संकीर्तन आन्दोलन का प्रचार करने के लिए मध्य भारत मैं झारखण्ड के जंगलों से होकर यात्रा कर रहे थे तब बाघ, हाथी, हिरन तथा अन्य जंगली जानवर उनके साथ हो लिए तथा अपनी अपनी विधि से नाच कर तथा हरे कृष्ण कीर्तन करके उसमें भाग ले रहे थे ।  
 यही नहीं भक्ति मैं रत मनुष्य भक्ति कार्य करते हुए उन सभी उत्तम गुणों को विकसित कर सकता है जो सामान्यतया देवताओं मैं पाए जाते हैं दूसरी और जो भक्त नहीं होता उसमें कोई उत्तम गुण नहीं पाए जाते भले ही शैक्षिक दृष्टी से उच्च शिक्षा प्राप्त हो, परन्तु अपने कार्य क्षेत्र मैं वह पशुओं से भी निकृष्ट देखा जा सकता हैं ।
उदाहरणार्थ कोई बालक, भले ही किसी विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त न किये हो, अवैध विषयी जीवन, जुआ, मांसाहार तथा मद्यपान का तुरंत परित्याग कर सकता है। परन्तु जो भक्त नहीं है वे अत्यधिक शिक्षित होने पर भी प्राय: शराबी, मांस भक्षक, कामुक, तथा जुआरी होते हैं । हमारा अनुभव है कि भक्त नवयुवक सिनेमा, रात्रि क्लब, नग्न नृत्य प्रदर्शन, रेस्तरां, मदिरालय आदि से अनासक्त रहता है ।
जो भक्त नहीं है वह प्राय: अधा घंटा भी शांतिपूर्वक नहीं बैठ सकता । योगपद्धति सिखाती कि यदि आप शांत रहे तो आपको अनुभूति होगी की मैं ईश्वर हूँ । यह पद्धति ही भौतिकतावाद , पुरुषों के लिए उपयुक्त हो लेकिन ध्यान के पश्चात् वे पुन: शराब, मांसाहार, जुआ इत्यादी की और उन्मुख हो सकते हैं। किन्तु एक भक्त किसी भी प्रकार के ध्यान का अभ्यास किये बिना ही स्वत: ऊपर उठ जाता है इसलिए वह व्यर्थ की बातों को त्याग कर उच्च चरित्र का निर्माण करता है । मनुष्य कृष्ण का शुद्ध भक्त बनकर ही सर्वोच्च चरित्र का विकास कर सकता है । और जब मनुष्य के जीवन मैं शुचिता और शुद्धता होगी तो उसके जीवन मैं कोई भी अशुभ घट ही नहीं सकता । और जब अशुभ नहीं नहीं है तो सब कुछ शुभ ही शुभ होगा ।

हरे कृष्ण
दंडवत
 

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