✅ गलत प्रणाम = कुष्ठ ✅
▶️ गलत प्रणाम से कुष्ठ रोग होता है !!!
१.मंदिर में ठाकुर को अपने बाये रखकर प्रणाम करना चाहिए
२. हमेशा पंचांग प्रणाम करना चाहिए
३. पूरा लेट कर प्रणाम करना हो तो कमर से ऊपर के वस्त्र पूरे उतार देने चाहिए
४. महिला क्योंकि ऊपर के वस्त्र नहीं उतार सकती
इसलिए महिला द्वारा लेटकर प्रणाम नहीं करना चाहिए
५. पुरे वस्त्र पहन कर जो पूरा लेटकर प्रणाम करता है
▶️ उसे सात जन्म तक कुष्ठ रोगी होना पड़ता है
वराह पूराण में ऐसा लिखा है-
वस्त्र आवृत देहस्तु यो नरः प्रनमेत मम
श्वित्री सा जयते मूर्ख सप्त जन्मनी भामिनी
६. गुरुदेव को सामने से
७. नदी को एवं सवारी को उधर से प्रणाम करना चाहिए,
जिधर से वह आ रही हो
८. मंदिर के पीछे
९. भोजन करते समय
१०. शयन के समय
ठाकुर, गुरु, संत, वरिष्ठ या किसी को भी प्रणाम नहीं करना चाहिए|
▶️ श्री हरिभक्ति विलास ग्रन्थ से संकलित
नोट :- किसी संत के पैर छूने की जिद नहीं करनी चाहिए दूर से पंचांग प्रणाम करना है (घुटनों के बल बैठकर सर जमीन से लगाना है ) कदाचित वे छूने की आज्ञा दे दें तो छूकर तुरंत हाथ धोने चाहिए वही हाथ माला या प्रसाद को लगने से अपराध लगता है यदि संत की मनाही हो तो वो जहाँ से गुजरे, उस स्थान की चरण रज मस्तक पर लगाना प्रणाम से बेहतर है
▶️ गलत प्रणाम से कुष्ठ रोग होता है !!!
१.मंदिर में ठाकुर को अपने बाये रखकर प्रणाम करना चाहिए
२. हमेशा पंचांग प्रणाम करना चाहिए
३. पूरा लेट कर प्रणाम करना हो तो कमर से ऊपर के वस्त्र पूरे उतार देने चाहिए
४. महिला क्योंकि ऊपर के वस्त्र नहीं उतार सकती
इसलिए महिला द्वारा लेटकर प्रणाम नहीं करना चाहिए
५. पुरे वस्त्र पहन कर जो पूरा लेटकर प्रणाम करता है
▶️ उसे सात जन्म तक कुष्ठ रोगी होना पड़ता है
वराह पूराण में ऐसा लिखा है-
वस्त्र आवृत देहस्तु यो नरः प्रनमेत मम
श्वित्री सा जयते मूर्ख सप्त जन्मनी भामिनी
६. गुरुदेव को सामने से
७. नदी को एवं सवारी को उधर से प्रणाम करना चाहिए,
जिधर से वह आ रही हो
८. मंदिर के पीछे
९. भोजन करते समय
१०. शयन के समय
ठाकुर, गुरु, संत, वरिष्ठ या किसी को भी प्रणाम नहीं करना चाहिए|
▶️ श्री हरिभक्ति विलास ग्रन्थ से संकलित
नोट :- किसी संत के पैर छूने की जिद नहीं करनी चाहिए दूर से पंचांग प्रणाम करना है (घुटनों के बल बैठकर सर जमीन से लगाना है ) कदाचित वे छूने की आज्ञा दे दें तो छूकर तुरंत हाथ धोने चाहिए वही हाथ माला या प्रसाद को लगने से अपराध लगता है यदि संत की मनाही हो तो वो जहाँ से गुजरे, उस स्थान की चरण रज मस्तक पर लगाना प्रणाम से बेहतर है
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