Thursday, 12 March 2020

भगवान् की आरती

यदि आप अपने आप को हिन्दू मानते हो आपको भगवान्  की आरती करनी चाहिए

हिन्दू धर्म मैं मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य भगवान् को प्राप्त करना है. भगवान् को प्राप्त करने के २ रास्ते हैं. पहला भागवत  पद्धति जिसमें श्रवण और कीर्तन मुख्य है और दूसरा पञ्चरात्र पद्धति जिसमें अर्चा विग्रह सेवा हैं और पांच बार आरती होती हैं. 

भागवत पद्धति मैं सिर्फ श्रवण और कीर्तन है मंदिर नहीं है. भारत बर्ष मैं कई भक्त हुए हैं जिन्होंने इस पद्धति को अपना कर भगवान् को प्राप्त किया है जैसे परीक्षित महाराज मुख्य हैं. उन्होंने सिर्फ भागवत कथा सुनकर भगवान् को प्राप्त किया.

दूसरा तरीका है भगवान् की सेवा करके भगवान् को प्राप्त करने का. वैष्णव संप्रदाय  मैं  मूर्ती पूजा नहीं कहा जाता बल्कि अर्चा विग्रह सेवा कहा जाता है. क्योंकि हमारे घर या मंदिर मैं जो भगवान् होते हैं वो मूर्ति नहीं होती बल्कि ऐसा विग्रह होता है जो सेवा लेने के लिए उपस्थित हैं. भक्ति का अर्थ होता है भगवान् की प्रेमपूर्वक सेवा.

अर्चा विग्रह सेवा का लाभ- 
अर्चा विग्रह सेवा करने से मनुष्य मात्र मैं सेवा करने का भाव उत्पन्न होता है और उसके जीवन मैं अनुशासन आता है. क्योंकि यदि घर मैं भगवान् हैं तो समय पर उनकी सेवा करनी आवश्यक है अन्यथा उनको हटा दो . घर हो या मंदिर भगवान् की सेवा समय पर और अनुशासित तरीके से करना अनिवार्य है. यदि आप भगवान् की सेवा अनुशासित तरीके से करते हैं तो आपके जीवन मैं अनुशासन आना निश्चित है.  यदि आपके जीवन मैं अनुशासन है तो आपका जीवन व्यवस्थित होगा और आपकी तरक्की भी होना निश्चित हैं.

हम दोनों विधियों का सही प्रकार से प्रयोग करना सीखेंगे. हम दोनों को मिक्स करके विधि पूर्वक भक्ति कैसे करें इसके बारे मैं चर्चा करेंगे और आपके प्रश्न भी आमंत्रित हैं यदि आपके मन मैं कोई जिज्ञासा उत्पन्न हो रही हो तो आपके प्रश्नों का स्वागत है.
१. सुबह जल्दी उठना
सबसे आवश्यक बात हैं सुबह जल्दी उठना चाहिए. वैसे तो ब्रह्म मुहूर्त मैं उठने का विधान है ब्रह्म मुहूर्त का मतलब है सूर्योदय से  ९६ मिनट अर्थात लगभग १.३० घंटे पहले का समय ब्रह्म मुहूर्त कहलाता हैं. ये सतोगुण का समय होता है. मन मैं गंदे विचार नहीं आते और मन शुद्ध रहता है. पूरा ब्रह्माण्ड सत्व गुण से युक्त हो जाता हैं.  
२. दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होने के बाद सर्व प्रथम भगवान् को जगाना चाहिए और यदि संभव हो तो भगवान् को दूध का भोग लगायें. (भोग कैसे लगाएं इसकी चर्चा बाद मैं करेंगे) दूध का भोग लगाने के बाद मंगला आरती करें. मंगला आरती करने से व्यक्ति का जीवन मैं कभी भी अमंगल नहीं होता हैं. 
३. दैनिक जप मंगला आरती करने के बाद भक्त को दैनिक जप निर्धारित मात्रा मैं जप करना चाहिए. आप साधारणतया हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर सकते हैं (जप विधि की चर्चा हम अलग से करेंगे). 
४ श्रृंगार आरती - जप करने के बाद आप भगवान् का श्रृंगार करें और छोटी सी  श्रृंगार आरती अवश्य करें. 
५. भोग - घर मैं जो भी आहार आप ग्रहण करते हैं उसका भोग भगवान् को अवश्य लगाएं आप चाहे जितने बार भगवान् को भोग लगा सकते हैं. 
६. यदि पति पत्नी घर पर नहीं रहते नौकरी करते हैं तो भगवान के मंदिर का पर्दा लगाकर ही बाहर जाएं. 
यदि पत्नी घर पर ही रहती है तो दोपहर को १२.२० बजे भगवान् को भोग लगाकर भोग आरती करके फिर पर्दा लगाएं.भगवान् को विश्राम कराएं.
७. शाम को ४ बजे भगवान् का पर्दा खोलें और भगवान् को हल्का फुल्का नाश्ता या पेय पदार्थ का भोग लगाएं.
८.  शाम को सूर्यास्त होने के तुरंत बाद संध्या आरती करनी चाहिए. 
९. रात्रि में भोग लगभग ८.३० बजे लगाने के बाद शयन आरती करें और भगवान् को शयन कराएं. पर्दा लगा दें. 
१०. भगवान् का पर्दा लगाते और हटाते समय घंटी जरूर बजाएं.
११. रात मैं १० बजे सभी को सो जाना चाहिए. यदि आप अपने व्यापार या नौकरी के कारण देर से घर लौटते हैं तो सुविधानुसार फेर बदल कर सकते हैं लेकिन जीवन मैं आपके लिए क्या महत्त्वपूर्ण है भगवान् या व्यापार ये प्राथमिकता आपको ही तय करनी होगी.  जो आपकी प्राथमिकता होगी वो ही आपको प्राप्त होगा. आप जो समय निश्चित करें आपको उस समय का कड़ाई  से पालन करना होगा अन्यथा अपने घर मैं भगवान् के विग्रह न रखें क्योंकि यदि आप नियमों का पालन नहीं करते तो अपराध होगा और अपराध की क्षमा नहीं होती.

इतना सब करने के पीछे उद्देश्य है की भगवान् का स्मरण बना रहे और जिसके साथ हम जितना अधिक समय बिताते हैं उस से उतना गाढ़ा प्रेम उत्पन्न होता है और फालतू के कामों से हम बचे रहते हैं. दरअसल ये एक बिज्ञान हैं. एक बार हमें भगवान् से प्रेम उत्पन्न हो जाएं फिर हम संसार मैं सभी जीवों से प्रेम कर सकते हैं. भक्ति का अर्थ है भगवान् की प्रेम पूर्वक सेवा.



No comments:

Post a Comment