हरे कृष्ण,
यह मनुष्य का शरीर अनेकों जन्मों के बाद प्राप्त होता है कहा जाता है ८४ लाख योनिओं मैं भटकने के बाद प्राप्त होता है जिसमें ९ लाख प्रकार के जलचर अर्थात जलीय जीव जंतु, १० लाख प्रकार के पक्षी ११ लाख प्रकार के कृमि कीट, २० लाख प्रकार की वनस्पतियाँ अर्थात पैर पौधे, ३० लाख प्रकार के पशु और ४ लाख प्रकार के मनुष्य होते हैं । अब प्रश्न ये है की ४ लाख मैं हमारी स्थिति क्या हैं? यदि हमें थोडा ज्ञान प्राप्त है और अध्यात्मवादी हैं तो हम ऊपर के १००० के अंतर्गत आते हैं।
प्रश्न है की हमें दुःख क्यों प्राप्त होते है और उनसे छुटकारा पाने का उपाय क्या है ? कष्ट सामान्यतया ३ प्रकार के होते हैं।
अब प्रश्न है की इन कष्टों से छुटकारा कैसे प्राप्त करें ?यह मनुष्य का शरीर अनेकों जन्मों के बाद प्राप्त होता है कहा जाता है ८४ लाख योनिओं मैं भटकने के बाद प्राप्त होता है जिसमें ९ लाख प्रकार के जलचर अर्थात जलीय जीव जंतु, १० लाख प्रकार के पक्षी ११ लाख प्रकार के कृमि कीट, २० लाख प्रकार की वनस्पतियाँ अर्थात पैर पौधे, ३० लाख प्रकार के पशु और ४ लाख प्रकार के मनुष्य होते हैं । अब प्रश्न ये है की ४ लाख मैं हमारी स्थिति क्या हैं? यदि हमें थोडा ज्ञान प्राप्त है और अध्यात्मवादी हैं तो हम ऊपर के १००० के अंतर्गत आते हैं।
प्रश्न है की हमें दुःख क्यों प्राप्त होते है और उनसे छुटकारा पाने का उपाय क्या है ? कष्ट सामान्यतया ३ प्रकार के होते हैं।
- अध्यात्मिक कष्ट - जो हमारे मन और शरीर द्वारा प्राप्त जैसे बीमारी और शोक, कभी कभी कोई अशुभ सूचना प्राप्त नहीं होने पर भी हमारा मन दुखी रहता है आमतौर पर कहते हैं मूड ऑफ है ये वास्तव मैं अध्यात्मिक क्लेश है।
- आधिभौतिक कष्ट - दूसरे जीवों द्वारा द्वारा प्राप्त कष्ट जैसे मच्छर के काटने से मलेरिया या कोरोना की बीमारी या गुंडों द्वारा सताया जाना इत्यादि इनको आधिभौतिक क्लेश कहा जाता है।
- आधिदैविक कष्ट - प्राकृतिक आपदाओं द्वारा प्राप्त कष्ट जैसे सुनामी, भूकंप, सूखा, बाढ़ इत्यादि इनको आदिदैविक क्लेश कहा जाता है।
भगवद गीता मैं चार प्रकार के दुःख बताये गए हैं - जन्म, मृत्यु, जरा(बुढ़ापा), व्याधि(बीमारी). हमारे जन्म लेते ही ये दुःख शुरू हो जाते हैं यदि जन्म लेते हैं तो मरेंगे अवश्य और बीमार भी होंगे एवं बुढ़ापा भी जरूर आएगा तो आसान सा उपाय है की यदि हमारा अगला जन्म ही न हो तो इन चरों दुखों से हम बच जायेगे। लेकिन हम क्या करें जो हमारा जन्म न हो? दुखों का असली कारण हमारा प्रारब्ध है अर्थात विगत कर्म या पूर्व मैं किये गए कर्म। अब हम विगत कर्मों को तो बदल नहीं सकते लेकिन उनको शून्य अवश्य कर सकते हैं। यदि हम अपने कर्मफलों को शून्य कर दें तो सुख और दुःख से दूर हो जायेंगे और पुनर्जन्म भी प्राप्त नहीं होगा इसी को विद्वान लोग मोक्ष प्राप्ति कहते हैं ।
सरल उपाय
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।
इस १६ नाम वाले महामंत्र का नियमित जाप करने से हम इन त्रिताप से बच सकते हैं और जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि से भी छुटकारा पा सकते हैं ।
भगवत गीता मैं भगवान् कहते हैं
लेख अधिक बड़ा न हो जाए इसलिए मैं इतना ही कहना चाहता हूँ की हरे कृष्ण महामंत्र का नियमित जप और कीर्तन करें और कष्टों से छुटकारा पाएं।
हरे कृष्ण।
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम।
अर्थात अंत समय मैं मनुष्य की आसक्ति जिसमें होती है वह उसी प्रकार के शरीर को प्राप्त होता है यदि हमने अपने जीवन मैं भगवान् की भक्ति की होगी तब ही अंत समय मैं हम भगवान् का स्मरण कर सकते हैं और भगवान् को प्राप्त कर सकते हैं। जैसे गांधीजी ने मरते समय हे राम कहा था क्योंकि वो जानते थे कि मरते समय क्या बोलना है और उन्होंने इसका अभ्यास भी क्या था उन्होंने भगवत गीता पर टीका भी लिखी थी जो मोदी ने ओबामा को भेंट मैं दी थी।लेख अधिक बड़ा न हो जाए इसलिए मैं इतना ही कहना चाहता हूँ की हरे कृष्ण महामंत्र का नियमित जप और कीर्तन करें और कष्टों से छुटकारा पाएं।
हरे कृष्ण।
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